ओवर द काउंटर मार्केट क्या है |Over The Counter Market Meaning |OTC मार्केट क्या है

OTC मार्केट क्या है, ओवर द काउंटर ट्रेडिंग क्या है, ओवर द काउंटर मार्केट में कौन से उत्पादों का सबसे अधिक कारोबार होता है, आप ओटीसी बाजार पर कैसे व्यापार करते हैं, ओवर द काउंटर एक्सचेंज की क्या भूमिका है

दोस्तों इस लेख में हम जानेंगे ओवर द काउंटर मार्केट (OTC मार्केट) क्या है? 

OTC मार्केट को हम फॉरवर्ड मार्केट भी कहते हैं। फ्यूचर मार्केट की उत्पत्ति फॉरवर्ड मार्केट से हुई है। तो पहले हम फॉरवर्ड मार्केट को समझ लेते हैं। इससे आपके लिए फ्यूचर मार्केट को समझना बहुत ही आसान हो जाएगा। फॉरवर्ड मार्केट को OTC मार्केट भी कहते हैं। जिसका मतलब होता है, ओवर द काउंटर (Over The Counter). जिसमें दो पार्टी के बिच बिना किसी बिचौलिया (इंटरमीडिएटर) या एक्सचेंज को शामिल किए एक निश्चित तारीख और निश्चित मूल्य पर ट्रेड किया जाता है। 

OTC मार्केट
OTC मार्केट

दोस्तों फॉरवर्ड मार्केट (OTC मार्केट) को एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए एक ब्रेड बनाने वाली कंपनी है। जिसका नाम है शर्मा बेकरीज। उनको ब्रेड बनाने के लिए गेहूं की जरूरत पड़ती है। जो की वो एक गेहूं निर्यातक (Exporter), खन्ना एक्सपोर्टर्स से खरीदते हैं। अब शर्मा जी को लगता है, की आने वाले तीन महीना में गेहूं की कीमत बढ़ जाएगी इसलिए वह बहुत सारा गेहूं पहले ही खरीदकर रख लेना चाहते हैं। 

लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं है। वहीं पर गेहूं एक्सपोर्टर खन्ना जी को लगता है, की आने वाले अगले तीन महीनों में गेहूं की कीमत कम हो जाएगी। जो की ठीक शर्मा जी के विपरित हैं। लेकिन शर्मा जी अभी भी अपनी बात पर कायम हैं। तो खन्ना जी शर्मा जी को एक ऑफर देते हैं। जिसे आप बहुत ध्यान से समझिएगा।

खन्ना जी कहते हैं की आज से ठीक 3 महीने बाद बाजार में गेहूं की जो भी कीमत चल रही होगी। मैं आपको 1000 किलो गेहूं आज जो बाजार में कीमत चल रही है उसी कीमत पर ही दूंगा। बाजार में आज की जो कीमत है वो है 25 रुपये की एक किलो है। शर्मा जी खुशी-खुशी तुरंत तैयार हो जाते हैं। क्योंकि उनको तो यही लग रहा था की आज से 3 महीने बाद गेहूं की कीमत 10 रुपये बढ़ जाएगी। 

अब मान लीजिये 3 महीने बाद गेहूं की कीमत 30 रुपये चल रही होगी तो, खन्ना जी के वादे के मुताबिक शर्मा जी को 25 रुपये किलो के हिसाब से ही कीमत चुकानी होगी। दूसरी तरफ खन्ना जी भी इस सौदे से खुश हो जाते हैं। क्योंकि उनके हिसाब से आने वाले 3 महीनो के बाद गेहूं की कीमत 10 रुपये तक कम हो जाएगी और गेहूं 15 रुपये किलो हो जाएगी। 

अब 3 महीनों के बाद 3 तरह की स्तिथि हो सकती है। 

  1. गेहूं की कीमत बढ़ जाएगी। 

पहली स्तिथि में गेहूं की कीमत 25 रुपये से बढ़ जाएगी। इस स्तिथि में शर्मा जी को फायदा हो जाएगा। मान लीजिए की गेहूं की कीमत उस समय लगभग 35 रुपये पर चल रही होगी। लेकिन एग्रीमेंट के हिसाब से कीमत अभी कुछ भी चल रही हो। खन्ना जी को वो 1000 कि० ग्रा० गेहूं 25 रुपये के हिसाब से ही देनी पड़ेगी। ऐसे में शर्मा जी को प्रत्येक किलो पर 10 रुपये का लाभ हो जायेगा। मतलब कुल 1000 किलो गेहूं है तो 1000 kg * ₹10 = 10000 रुपये का कुल लाभ होगा। 

  1. गेहूं की कीमत 25 रुपये से घाट जाये।

दूसरी स्तिथि ये हो सकती है की गेहूं की कीमत 25 रुपये से नीचे आ जाये। ऐसे में उस समय गेहूं की जो भी कीमत होगी शर्मा जी को 25 रुपये किलो के हिसाब से ही कीमत चुकानी पड़ेगी। इस स्तिथि में खन्ना जी को लाभ हो जाएगा। अब मान लीजिए गेहूं की कीमत 10 रुपये घटकर 15 रुपये हो जाती है। मतलब कुल 1000 किलो गेहूं है तो 1000 kg * ₹10 = 10000 रुपये का कुल लाभ खन्ना जी को होगा। 

  1. गेहूं की कीमत में कोई बदलाव नहीं होती है। 

तीसरी स्तिथि ये हो सकती है की गेहूं की कीमत में कोई बदलाव न हो और वो 25 रुपये किलो पर ही रहे। तो ऐसी स्तिथि में दोनों में से किसी को भी लाभ या नुकसान नहीं होगा। 

दोस्तों चलिए अब इनके सेटलमेंट प्रक्रिया को भी समझ लेते हैं। पहली स्तिथि का उदाहरण लेते हैं जहां पर गेहूं की कीमत 35 रुपये है। शर्मा जी को 1000 किलोग्राम गेहूं खरीदने पर कुल 10000 रुपये का लाभ हो रहा है। अब यदि शर्मा जी 1000 कीलो गेहूं खन्ना जी से खरीदते हैं। तो उसे फिजिकल सेटलमेंट कहा जाएगा। जहां पर एक्चुअल में सामान की डिलीवरी खरीदने वाले को मिल गई और बेचने वाले को उसके बदले में पैसे मिल गए। 

अब मान लीजिए खन्ना जी, शर्मा जी को कहते हैं की, आपको मुझसे 1000 किलोग्राम गेहूं 25 के भाव पर खरीदने की जरूरत नहीं है। आपका इस कॉन्ट्रैक्ट में जो 10000 रुपये का प्रॉफिट हो रहा है। आप वो लाभ मुझसे डायरेक्टली ले लो। इसी सेटलमेंट को कॅश सेटेलमेंट कहते हैं। जहां पर एक्चुअल में प्रोडक्ट की डिलीवरी नहीं होती है। 

फ्यूचर मार्केट क्या है What Is Future Market 

अब आप फ्यूचर मार्केट को समझने के लिए बिल्कुल तैयार हैं। लेकिन फॉरवर्ड मार्केट (OTC Market) से आपने जो भी सिखा है। उसकी दो महत्वपूर्ण बातों को आप जरूर याद रखें।

पहला तो ये एक डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट था। क्योंकि शर्मा जी और खन्ना जी ने एक्चुअल में गेहूं के प्राइस पर ट्रेड नहीं किया, बल्कि गेहूं को आधारभूत रखते हुए एक कॉन्ट्रैक्ट बनाया। जिसमें लिखा था की 3 महीने बाद गेहूं की कीमत कुछ भी चल रही हो। हम ट्रेड 25 रुपये पर ही करेंगे।

दूसरा ये की इस ट्रेड में एक्चुअल में गेहूं की डिलीवरी नहीं की गई। बल्कि कैश सेटलमेंट किया गया। 

OTC Market में क्या कमियां हैं, ओवर द काउंटर एक्सचेंज की क्या भूमिका है

OTC Market (फॉरवर्ड मार्केट) की कुछ कमियां भी हैं। जैसे की इसमें कोई रेगुलेटर नहीं होता है। इस कारण से दूसरे पार्टी के डिफॉल्ट करने के मौके बढ़ जाते हैं। 

दूसरा इसमें आपको कॉन्ट्रैक्ट से एग्जिट करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट में लिखे गए अवधि तक इंतज़ार करना पड़ता है। जिसके कारण यदि इस दौरान आपका मन बदल जाये और आप उसी वक्त एग्जिट करके दूसरे डायरेक्शन में ट्रेड करना चाहो तो नहीं कर पाओगे।

तीसरा आपको आपका काउंटर पार्टी ढूंढना पड़ेगा। जिसका व्यू आपसे ठीक अपोजिट हो। जो की काफी मुश्किल काम है। 

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इन्ही कारणों से फ्यूचर मार्केट को लाया गया। फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट भी एक डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट होता है। जिसकी वैल्यू एक अंडरलाइन जैसे की स्टॉक, एसेट, कमोडिटी या फिर इंडेक्स में किया जाता है।

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